“Attitude is a choice. Happiness is a choice. Optimism is a choice. Kindness is a choice. Giving is a choice. Respect is a choice. Whatever choice you make makes you. Choose wisely.”
― Roy T. Bennett
Image copyrightCourtesy Amar Mahal Museum Library TasveerImage captionराजकुमारी रमा राज्य लक्ष्मी राणा. पूर्व कुलनाम श्रीश्री अधिराजकुमारी रमा राज्य लक्ष्मी देवी (नेपाल)
भारत की आज़ादी के साथ ही यहां के शाही ख़ानदानों ने अपनी ताक़त गंवा दी, लेकिन आज भी इनके बारे में लोगों की उत्सुकता बरक़रार है.
इतिहास महाराजाओं के इर्द-गिर्द घूमता रहा है और इनमें से अधिकांश आज भी बहुत सम्पन्न और प्रभावशाली हैं.
हालांकि जयपुर की महारानी गायत्री देवी जैसी कई प्रमुख महारानियां रही हैं, जिन्होंने भारत में लड़कियों की शिक्षा को काफी बढ़ावा दिया और वो 'वोग' फैशन पत्रिका की सबसे सुंदर महिलाओं में शुमार रहीं.
बावजूद इसके भारत की शाही महिलाएं आम तौर पर गुमनाम ही रहीं और उनके बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है.
अब एक फ़ोटोग्राफ़ी स्टूडियो 'तस्वीर' अपनी दसवीं सालगिरह के अवसर पर उन्हें सामने लाने की कोशिश कर रहा है.
स्टूडियो ने भारतीय महारानियों और राजकुमारियों की तस्वीरें जमा की हैं और 'महारानीः वुमेन ऑफ़ रॉयल इंडिया' नाम से एक प्रदर्शनी लगाई है.
'तस्वीर' का कहना है कि इन तस्वीरों को म्यूज़ियम ऑफ़ आर्ट एंड फ़ोटोग्राफ़ी के अभिलेखागारों, अलग अलग महाद्वीपों के शाही कलेक्शनों और देश विदेश की अन्य संस्थाओं और निजी कलेक्शनों से इकट्ठा किया गया है.
इसमें विक्टोरिया और अल्बर्ट म्यूज़ियम, लंदन की दि नेशनल पोर्टेट गैलरी और जम्मू की अमर महल म्यूज़ियम एंड लाइब्रेरी से सहयोग लिया गया है.
Image copyrightCourtesy B. Jayachandran TasveerImage captionकेरल के त्रावणकोर की रानी सेथु पार्वती बाई और रानी सेथु लक्ष्मी बाई.Image copyrightCourtesy Urmila Devi TasveerImage captionगुजरात में कोट्दा सांगनी की थाकोरानी विजयलक्ष्मी देवी साहिबा की 1941-1942 की तस्वीर.Image copyrightCourtesy MAP TasveerImage captionपटियाला की रानी यशोदा देवी की यह तस्वीर 1930 के दशक में लंदन के वांडयीक स्टूडियोज़ में खींची गई थी.Image copyrightCourtesy MAP TasveerImage captionकपूरथला की महाराज कुमार रानी सीता देवी (पूर्व में काशीपुर की), यह तस्वीर एंद्रे डर्स्ट ने 1934 में ली थी.Image copyrightCourtesy MAP TasveerImage captionयह तस्वीर हैदराबाद के राजा दीन दयाल एंड संस द्वारा 1915 में ली गई थी. इसमें कपूरथला की रानी प्रेम कौर साहिबा (पूर्व नाम डेल्गैडो ब्रियोन्स, स्पेन) दिख रही हैं.Image copyrightCourtesy MAP TasveerImage captionरामपुर की राजकुमारी रफ़त ज़मानी बेग़म या बड़ी बेग़म साहिबा (पूर्व में नाज़ियाबाद परिवार की थीं.)Image copyrightCourtesy MAP TasveerImage captionबड़ौदा की महारानी चिमनाबाई, जिन्हें देवास वरीष्ठ की श्रीमंत गजराबाई घाटगे के नाम से भी जाना जाता था.Image copyrightCourtesy MAP TasveerImage captionजयपुर की महारानी गायत्री देवी, जिन्हें कूच बिहार की राजकुमारी आयशा के नाम से जाना जाता था.
In the reconstruction of a region or a nation, transport systems invariably play a vital role. The growth and development of transportation provides a medium, contributing to the progress of agriculture, industry, commerce, administration, defence, education, health or any other community activity. Many of the regional characteristics that are influencing the layout of the existing transformational system are the creation of their antecedent transformational features. The present-day transport network has evolved out of the past framework because as trail evolves successfully into the pioneer dirt road, then into the improved farm road and finally, into the present day paved highways with heavy motor traffic. Many factors are involved in the development of a transport system. The present-day transport system of a country or a region cannot be explained by one factor alone. In fact, services of interrelated factors are responsible for the development of transport system as depicted ...
जब भी ईरान को तस्वीरों में देखा, लगा कोई ख़्वाब हो — रंगों का ख़्वाब। नीले गुम्बद, फ़िरोज़ी टाइलें, गुलज़ार सी मस्जिद, मिट्टी में गुलाब। बाज़ार जैसे कश्मीर के क़ालीन, रंगों में लिपटे हर राह ओ मआब, मीनारों की चुप में सदा जैसे यादें सुनाती हों कोई किताब। ईरान से आया संतूर का नग़्मा, धड़कन में घुला कोई दर्द का साज़, “जानम”, “नाज़नीन”, “बेख़ुदी” की रिमझिम, हर जज़्बा जैसे हो ईरानी राज़। ये सरहदों का क़ैदी नहीं, ये दिल्ली की चाय की प्याली में है। लखनऊ की रक़ाबी, हैदराबाद की शेरवानी, बनारस के पानदान की ख़ुशबू में है। ये हमारी बोली में है, दाल-रोटी, लोरी, और अल्फ़ाज़ में। “अफ़सोस”, “आराम”, “उम्मीद” बन कर, रहता है रोज़-ओ-शब की आवाज़ में। ईरान से आए वो सूफ़ी बुज़ुर्ग, जिन्होंने ग़म को इबादत कहा। जिन्होंने इश्क़ को सजदा बनाया, जिनके सांसों में ज़ौक़-ए-वफ़ा। ईरान कोई मुल्क नहीं है, जीने का एक सलीक़ा है। दुख को क़रार से सहने का, और ख़ुशी को ख़ामोशी से बाँटने का तरीक़ा है। जब ईरान ज़ख़्मी होता है, लगता है जैसे अपने ही आँगन में आग लगी हो। जैसे बुज़ुर्गों की क़ब्र पर पत्थर गिरे हों, दिल की महराबों में...
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