निम्नांकित पर टिप्पणी लिखिए - 1. निश्चयवाद 2. संभववाद 3. नव निश्चयवाद
1. निश्चयवाद (Determinism)
इसे निश्चयवाद (Determinism) अथवा पर्यावरणीय निश्चयवाद (Environmentalism) भी कहते हैं। इस विचारधारा के अनुसार मनुष्य प्रकृति का दास है। पर्यावरण सर्वशक्तिमान है और मानवीय क्रियाकलापों को पूर्णतया नियंत्रित करता है। प्राकृतिक शक्तियों के सामने मानव तुच्छ, महत्वहीन एवं निष्क्रिय होता है। विश्व के अलग-अलग भागों में मानव के व्यवहार में अंतर प्रकृति में पाए गए अंतर के अनुसार होता है। जैसे कांगो बेसिन के पिग्मी, कालाहारी के बुशमैन, उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र के एस्किमो, मध्य एशिया के खिरगिज़ लोगों का जीवन एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न है और प्राकृतिक शक्तियों द्वारा पूर्णतया नियंत्रित है।
भूगोल में पर्यावरणीय निश्चयवाद की विचारधारा प्रारंभिक काल से चली आ रही है और यह किसी न किसी रूप में द्वितीय विश्व युद्ध तक चलती रही। किंतु इस विचारधारा को व्यापक रूप जर्मन भूगोलवेत्ता द्वारा दिया गया। हिप्पोक्रेट्स, स्ट्रेबो, मोंटेस्क्यु, बोडिन, इमैनुअल कांट, एलेग्जेंडर बोन हैंबोल्ट, कार्ल रीटर, चार्ल्स डार्विन, फ्रेडरिक रैटजेल, कुमारी चर्चिल सैंपल, डेमोलिन, एल्सवर्थ हटिंगटन आदि भूगोलवेताओं ने मानव पर प्राकृतिक पर्यावरण के नियंत्रण स्वीकार करते हुए पर्यावरणीय निश्चयवाद की विचारधारा को आगे बढ़ाया।
फ्रेडरिक रैटजेल (1844-1904) जो कि एक जर्मन विद्वान था और डार्विन का अनुयायी था। रेटजेल को सही अर्थों में निश्चयवाद का प्रतिपादक माना जाता है। रेटजेल के अनुसार "समान स्थितियां समान जीवन शैली को जन्म देती है।" इस कथन को सिद्ध करने के लिए रेटजेल ने ब्रिटिश द्वीप समूह और जापान के उदाहरण दिए। रेटजेल महोदय के अनुसार इन देशों की द्वीपीय स्थिति ऐसी है जो उनको बाहरी आक्रमण से सुरक्षा प्रदान करती है, परिणामस्वरूप इन दोनों देशों के निवासियों ने तीव्र गति से प्रगति की है। और इन देशों को विश्व में महाशक्तियों का स्तर प्राप्त है। रेटजेल योग्यतम की उत्तरजीविता के सिद्धांत में विश्वास करता था। रेटजेल का मत था कि मानव अपने पर्यावरण की उपज है और पर्यावरण की प्राकृतिक शक्तियाँ ही मानव जीवन को ढालती है, मनुष्य तो केवल वातावरण की मांग के साथ ठीक समायोजन करता है और उसके अनुसार अपने को योग्य बनाता है।
कुमारी सैंपल (1863-1932) एक विख्यात अमेरिकन भूगोलवेत्ता थी जिन्होंने पर्यावरण निश्चयवाद का समर्थन अपनी पुस्तकों तथा लेखों में किया। वह रेटजेल की शिष्या थी। उन्होंने रेटजेल के विचारों को अंग्रेजी भाषा जानने वाले जगत के सामने प्रस्तुत करने के लिए "भौगोलिक पर्यावरण का प्रभाव" की रचना 1911 में की। उन्होंने इस पुस्तक का आरंभ ही निम्नलिखित पंक्तियों से किया - "मनुष्य पृथ्वी तल की उपज है, जिसका अभिप्राय केवल इतना ही नहीं है कि वह पृथ्वी की संतान है, उसकी धूल का कण है, किंतु यह भी है कि पृथ्वी ने उसे मातृत्व दिया है। उसका पालन पोषण किया है, उसके लिए कार्य निश्चित किए हैं। उसके विचारों को दिशा दी है। उसके सामने कठिनाइयां उत्पन्न की। जिससे उसके शरीर को बल मिला और उसकी बुद्धि तेज हुई। उसे नौ संचालन अथवा सिंचाई की समस्याएं दी है। और साथ ही साथ इन समस्याओं का हल भी बताया है।" विश्व के भूगोलवेताओं का मानना है कि सैंपल ने पर्यावरण निश्चयवाद की विचारधारा को चरम सीमा तक पहुंचा दिया।
2. संभववाद (Possibilism)
यह एक ऐसी विचारधारा है जिसके अनुसार मानव पर्यावरण की कठपुतली अथवा उसका दास नहीं है। यद्यपि वह प्रकृति से प्रभावित होता है तथापि वह अपनी बुद्धि बल तथा कार्य कुशलता के आधार पर पर्यावरण को प्रभावित करता है। समय बीतने के साथ-साथ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का विकास होता है और मनुष्य की प्राकृतिक शक्तियों पर विजय पाने की क्षमता बढ़ जाती है। मनुष्य ने अपनी कार्यकुशलता के बल पर आदि जीवन को छोड़कर आधुनिक जीवन में प्रवेश किया है। उसने वनों को काटकर कृषि शुरू की और साथ ही पशुपालन का लाभ उठाया। नदियों पर बांध बनाकर सिंचाई तथा जल विद्युत की व्यवस्था की।और बाढों से छुटकारा पाया। सिंचाई की सहायता से मरुभूमियों में कृषि की। खनिजों का उपयोग करके उद्योग धंधे स्थापित किए। नगर और परिवहन मार्गों का निर्माण किया और यहां तक कि अंतरिक्ष की खोज की। यह सभी मनुष्य की प्रकृति पर विजय के उदाहरण है। मानव सभ्यता के विकास को ध्यान में रखते हुए विश्व भर के भूगोलवेताओं ने बीसवीं शताब्दी के आरंभ में निश्चयवाद को छोड़कर संभववाद को अपनाना शुरू कर दिया।
फ्रांसीसी विद्वान लूसियन फैब्रे संभववाद का जनक माना जाता है। फैब्रे का विश्वास था कि भौगोलिक अध्ययन में मानवीय तत्व भौतिक तत्वों से अधिक महत्वपूर्ण है, यही कारण है कि भौगोलिक अध्ययन का झुकाव निश्चयवाद से हटकर संभववाद की और हो रहा है।
फ्रांस के विडाल डी ला ब्लाश को सही अर्थों में संभववाद का संस्थापक माना जाता है। ब्लास के अनुसार प्रकृति एक परामर्शदाता से अधिक कभी नहीं होती।
फ्रांस का जीन ब्रूंस, ब्लास का शिष्य था। वह संभववाद का कट्टर समर्थक था। जीन ब्रूंस ने ब्लास के विचारों को आगे बढ़ाया और मनुष्य पर्यावरण संबंधों को भी विस्तारपूर्वक समझाया। ब्रुन्स की मान्यता थी कि मनुष्य अपने पर्यावरण के प्रभाव को चुपचाप सहन नहीं करता, वरन उसे परिवर्तित करने के लिए क्रियाशील रहता है।
3. नव निश्चयवाद (Neo-Determinism)
इसे नव निश्चयवाद अथवा आधुनिक निश्चयवाद भी कहते हैं। यह निश्चयवाद तथा संभववाद की चरम सीमाओं के बीच की अवधारणा है, जिसका प्रतिपादन ऑस्ट्रेलिया के विद्वान ग्रिफिथ टेलर ने किया था। टेलर ने इसे वैज्ञानिक निश्चयवाद के नाम से भी पुकारा तथा इसके लिए "रुको और जाओ निश्चयवाद" वाक्यांश का प्रयोग भी किया।
इस संकल्पना के अनुसार प्रकृति मनुष्य को उसकी बुद्धिमता के अनुसार संभावनाओं का उपयोग करने का अवसर देती है। यदि मानव चतुर है तो है प्रकृति के कार्यक्रमों का अनुसरण करता है, इस आधार पर यह माना जाता है कि पर्यावरण द्वारा निर्धारित सीमा में मानव सर्वोत्तम संभावनाओं को चुन सकता है।
Comments
Post a Comment